केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मिशन मोड के तहत अगले डेढ़ साल में 10 लाख नौकरियां देगी। इसके लिए सरकार को करीब 4500 करोड़ रुपये के सालाना बजट की जरूरत पड़ेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 10 लाख नौकरियों में 90 फीसदी यानी 9 लाख नौकरियां ग्रुप-सी कैटेगरी की होंगी। बता दें कि ग्रुप-सी कैटेगरी के पदों पर क्लर्क, चपरासी, सेमी-स्किल्ड कर्मचारी आदि आते हैं। जिनकी मंथली सैलरी 40 हजार रुपये के आसपास होगी। दरअसल, केंद्र सरकार जिन पदों पर नौकरियां देने की योजना बना रही है, ये वे पद हैं जो बीते कई सालों से अलग-अलग वजहों से खाली पड़े थे। इन वजहों में धीमी और कठिन भर्ती प्रक्रिया, कोर्ट के हस्तक्षेप और कोरोना वायरस जैसी महामारी शामिल है।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार के सूत्रों ने कहा कि 10 लाख पदों पर नौकरियां देने के लिए 18 महीने का समय बहुत कम है और ऐसा करना आसान तो बिल्कुल नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं, नौकरी देने के बाद इतने बड़े पैमाने पर ट्रेनिंग देना और भी ज्यादा चौलेंजिंग होगा। सूत्रों ने बताया कि 18 महीने में 10 लाख लोगों को नौकरी देने का मतलब ये भी होगा कि ये सभी लोग एक ही टाइम-पीरियड में प्रमोशन के भी हकदार बन जाएंगे।
सरकारी आंकड़ों से मालूम चला कि 1 मार्च, 2020 तक 77 मंत्रालयों और विभागों में 8.72 लाख पद खाली थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन कुल खाली पदों के 90 फीसदी पद तो सिर्फ पांच मंत्रालयों या विभागों में ही खाली पड़े हैं। इनमें रक्षा (नागरिक), रेलवे, गृह मामलों, डाक और राजस्व विभाग शामिल हैं।
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री जीतेंद्र सिंह ने लोकसभा में 30 मार्च, 2020 को कुछ आंकड़े जारी किए थे, जिनके मुताबिक उस वक्त 77 मंत्रालयों और विभागों में कुल 31.32 लाख सरकारी कर्मचारी कार्यरत थे, जबकि 1 मार्च, 2020 को 40.04 लाख कर्मचारियों की स्ट्रेंथ को सैंक्शन किया गया था।
जिन मंत्रालयों या विभाग में सबसे ज्यादा पद खाली हैं, उनमें सबसे ऊपर डिफेंस (सिविल) का नाम आता है। डिफेंस में कुल 2.47 लाख पद खाली हैं। इसके बाद रेलवे में 2.37 लाख, गृह मामलों में 1.28 लाख, डाक विभाग में 90,050 और रेवेन्यू में 76,327 पद खाली हैं।